बुधवार, 13 जनवरी 2010

ghar vaapas aane ke baad

परसों यानी १२ जनवरी को लम्बी यात्रा के बाद रायपुर पहुंचा. घर पहुँच कर , तबीयत हरी हो गयी, थकान काफूर हो गयी.जेट लैग महसूस ही नहीं हुआ . इतने दिनों से घर बंद था. साफ़ सफाई में दो दिन कैसे बीते , पता ही नहीं चला.
आज सामान्य दिनचर्या शुरू हो रही है. नींद अल-सुबह ५ बजे खुल गयी.बिस्तर छोड़ कर उठा. तैयार हो कर प्रातः कालीन भ्रमण पर निकल गया.और १ घंटे बाद लौटा.रास्ते भर लोग बाग़ मिलते रहे. दुआ सलाम होते रहे. शुक्र है अभी मेरा शहर महा नगर नहीं बना . घर आकर पहली फुर्सत में बातें कर रहा हूँ.
ईश्वर बड़ा कृपालु है, ऐसा रह रह कर महसूस होता है. भारतवर्ष पर प्रकृति की कितनी दया है. लगभग ९ महीने चमकदार धूप खिली रहती है. मौसम साल भर अनुकूल रहता है. यह इतनी शिद्दत से शायद इसलिए भी लग रहा है कि पिछले दो महीने देश से बाहर रह आया हूँ.अमेरिका तथा यूरोप की ठण्ड,हिमपात,और बारिश को देख चुका हूँ.भूकंप,चक्रवात,दावानल(जंगल की आग) इत्यादि प्राकृतिक विपदाएं वहां जिस पैमाने पर होती हैं, वैसी भीषण आपदाएं तुलनात्मक रूप से भारत में नहीं होतीं.वहां प्रकृति की प्रतिकूलता के बावजूद , लोगों की कर्मठता ,कर्तव्य निष्ठां श्लाघ्य लगती है.काश! ईश्वर के प्रति कृतज्ञता के साथ,वैसे समर्पण के साथ, अपने अपने काम में हम लोग भी लगे रहें तो कितना अच्छा हो. देश का कायापलट हो जाय!!
वहां पर अधिकांश देशों में प्रशासनिक व्यवस्थाएं सुचारू रूप से काम करती हैं, बगैर राजनीतिक दबाव के. अपने यहाँ यदि यातायात के उल्लंघन पर यदि पुलिस किसी को पकडती भी है,तो या तो वह रिश्वत दे कर छूट जाता है,या फिर वह अपने किसी मंत्री या नेता से बात कर पुलिस पर दबाव डलवा कर बच जाता है.जो दशा  छोटे मोटे  अपराध की है वही संगीन मामलों की है.
 हमारे यहाँ " लोकतंत्र" है. नियमित अंतराल पर चुनाव भी होते हैं.सरकारें बदलती रहती हैं मगर ज़मीनी हालात वही रहते हैं.
शायद खोट तंत्र में नहीं, लोक में है.ज़रुरत है जन जागरण की और सही कदम उठाने की. यह काम भी शिक्षित वर्ग के द्वारा ही होना है. ज़रा साथ बैठें और सोचें कि क्या जा सकता है..............
आज इतना ही.

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