शनिवार, 2 जनवरी 2010

The last week of stay in USA.



इस बार के सैन होजे प्रवास का अंतिम सप्ताह शुरू हो रहा है कैसा विचित्र मन है मेरा -  घर वापस जाने की खुशी भी है और दूसरी ओर राजू(पुत्र),अनुष्का(पौत्री),और रचना(पुत्र वधू) को छोड़ कर जाना अच्छा नहीं लग रहा है. पता नहीं फिर कब वे भारत आयेंगे या, फिर कब हम ही उनसे मिलने यहाँ  आ पायेंगे .
हाँ, यह संतोष भी हैकि पिछले दो महीने अपने तमाम उतार चढ़ाओं के बावजूद,  मोटे तौर पर सुखद रहे. अपनी व्यावसायिक व्यस्तताओं और गंभीर चिंताओं का जिस तरह  से राजू सामना कर रहा है, वह प्रशंसनीय है. संस्कृत में इस आशय का सुभाषित है कि परदेश में व्यक्ति की शिक्षा या हुनर ही उसकी सच्ची मित्र होते  है -- कितना सटीक और सही है- इस का अनुभव हर दिन हो रहा है.रचना भी जिस लगन और समर्पण अपने घर,rajoo और अनुष्का की देखभाल में व्यस्त है-वह भी श्लाघ्य है.
अनुष्का की चहुंमुखी प्रगति देख कर मैं बहुत खुश हूँ.७ वर्ष की हुई है वह सितम्बर में.दूसरी कक्षा में है. पढाई में अच्छी है. पियानो सीख रही है . भारतीय संगीत सीख रही है खेल कूद ,जिम्नास्टिक्स में भाग लेती है.  अभी स्कूल के शरदावकाश में हिन्दी की वर्णमाला सीख कर , छोटे,छोटे वाक्य  पढ़ना और लिखना सीख कर उसने सब को विस्मित कर डाला .इस एक माह में नई भाषा में इतनी प्रगति मेरी अपेक्षा से कहीं अधिक है.
सचमुच प्रभु की बड़ी कृपा है मुझ पर कि घर से इतनी दूर अपने नए बसेरे में मेरा पुत्र सपरिवार प्रसन्न है तथा अच्छा काम कर रहा है.
आज इतना ही.

2 टिप्‍पणियां:

  1. Your observation of desi situation around
    collection of dairy and calendars is remarkable.
    It is not blog spot that has made you a writer,
    you had it in you. thankas to Dr Ashutosh Shastry
    for inspiring you to write this blog.
    Plz continue writing.
    Bapu

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  2. Dhanyvaad! chaliye aap hee sahee honge. lekhak shaayad soyaa padaa hogaa lekin use raajoo ne use jagaa diyaa.
    Magar Sarkaar aapkee tippanee to phir bhee nahee aaee.

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