गुरुवार, 10 दिसंबर 2009

baaten.

मराठी में कहते हैं : इजा बीजा तीजा. यह शायद  एक दो तीन का पर्याय है. मतलब यह कि अगर आप संकट के लगातार तीन हमले सफलतापूर्वक झेल गए तो समझो संकट टल गया.(या समझो आप की पीठ  इतनी मज़बूत हो गयी है कि संकट बेअसर होगा.)
आज बातों की तीसरी किश्त है.मैं लिख रहा हूँ और कुछ लोग पढ़ भी रहे हैं तीसरी बार. क्या यह संकेत है कि बातें जारी रहेंगी?
पहली प्रतिक्रया भी मिली . उन्हें बातें पसंद आईं.लेकिन प्रत्यक्ष भेंट में मेरा मौन भी मुखर लगा.क्या समझूं मैं? मैं आभारी हूँ उन का. उनकी प्रतिक्रया ने मुझे आगे बढ़ने को प्रोत्साहित किया है.
यह तो चलता रहेगा. अब वह किया जाए जिस के लिए येहाँ बैठा हूँ याने  बातें की जाएँ.
             लाई हयात आये, क़ज़ा ले चली चले,
              अपनी खुशी न आये , न अपनी खुशी चले.
यह सब तो सही है. आना जाना  अपने हाथ की बात नहीं है.लेकिन यहाँ आने और यहाँ से जाने के बीच के समय (यानी जिन्दगी) में आपने और मैंने किया क्या? मंदिर बनाए? मस्जिदें तोड़ी? लोगों को जोड़ा या तोड़ा? कितनी दोस्तियाँ कीं? कितने रिश्ते निभाये? कहीं अपनों को ठेस तो नहीं पहुंचाई?
जीवन के जिस मोड़ पर हूँ वहां से पीछे मुड़ कर देखता हूँ  तो काफी लम्बी यात्रा पूरी हुई लगती है. सामने देखता हूँ तो लगता है कि यात्रा अपने पड़ाव के करीब है.
इसलिए, बंधू, जो करना है उसमें ढिलाई नहीं चलेगी. गति बढानी है बहुत काम बाकी हैं. उन्हें निपटाना है .जाते समय यह संतोष रहना चाहिए कि आस पास के लोग खुश हैं. मैं स्वयं खुश हूँ. परम प्रिय से भेंट के उत्सव के लिए मेरी तैयारी पूरी है.
आज इतना ही. जय हो!!

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें