बांग्ला के कई प्रथित यश लेखकों यथा: रवीन्द्रनाथ टैगोर ,बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय,शरतचंद्र चट्टोपाध्याय,बिमलमित्र,आशापूर्णादेवी,समरेश बासु आदि की एक से अधिक कृतियों पर हिन्दी,बांग्ला एवं अन्य भारतीय भाषाओं में कई फ़िल्में बन चुकी हैं.वे फ़िल्में लोकप्रिय भी हुईं.इन लेखकों को बांग्ला साहित्य में तथा अखिल भारतीय स्तरपर भी विभिन्न पुरस्कार मिले हैं.
हिन्दी के प्रचार प्रसार की व्यापकता के हिसाब से साहित्यिक कृतियों पर आधारित फिल्मों की संख्या बहुत कम दिखती है.पंडित चंद्रधर शर्मा गुलेरी,मुंशी प्रेमचंद,भगवतीचरण वर्मा, फणीश्वरनाथ "रेणु",कमलेश्वर के अलावा मुझे कोई अन्य नाम नहीं पता जिनके उपन्यास अथवा कहानी पर कोई फिल्म बनी हो. हाँ, गुलशन नंदा के उपन्यास, जिन्हें हिन्दी साहित्य जगत में कोई स्थान नहीं मिला,उन पर एक से अधिक फ़िल्में बनीं भी और वे चलीं भी.
हिन्दी की फिल्मों का प्रदर्शन अखिल भारतीय स्तर पर होता है.महानगरों के मल्टीप्लेक्स के दर्शकों से ले कर छोटे मझोले शहरों कस्बों के दर्शकों तक इनका एक विशाल दर्शकवर्ग है.टेलीविजन के चैनलों ने इन्हें घर घर में पहुंचा दिया है.अलावा इन के विदेशों में बसे भारतीय दर्शक भी भारी संख्या में हिन्दी फ़िल्में देखते हैं.
इतनी विशाल दर्शक संख्या के बावजूद हिदी निर्माताओं द्वारा अपनी ही भाषा के समृद्ध साहित्य की ऐसी उपेक्षा समझ में नहीं आती.हालीवुड की फिल्मों को तोड़मरोड़ कर पेश किया जा रहा है,दक्षिण भारत की सुपर हिटफिल्मों का रीमेक बन सकता है .परन्तु हिन्दी के लोकप्रिय लेखकों की कृतियों पर कोई फिल्म नहीं बनती.धर्मवीर भारती ,उषा प्रियंवदा,हरिशंकर परसाई,आदि की कई ऐसी रचनाएं हैं जिन पर सफल फ़िल्में बन सकती हैं.
है कोई (माई) हिन्दी का लाल जो बीड़ा उठाये? या इस के लिए भी किसी विदेशी निर्माता को ही आगे आना होगा?
आज इतना ही.
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