बुधवार, 16 दिसंबर 2009

ghar.

आज १४ दिसंबर शाम के ७ बजे जब मैं यह लिख रहा हूं , वहां रायपुर  में पंद्रह तारीख की सुबह के साढ़े आठ बजे होंगे.सन १९८९ को इसी दिन राजीव नगर वाले अपने घर में हम लोगों ने गृह प्रवेश   किया था. उस दिन की यादें आज ताजा हो गयीं हैं. पूरे बीस साल हो गए इस घर में रहते .सुबह के ९ बजे पंडितों के आगमन के साथ पूजा पाठ ,होम हवन,ब्राह्मण भोजन,आमंत्रित अतिथियों की एक के बाद एक पंगतों का सिलसिला शाम तक चला.घर के लोगों ने लगभग रात के ९ बजे भोजन किया.
घर के बुजुर्गों तथा परिचितों व मित्रों में से कुछ बहुत प्यारे लोग आज हमारे बीच से हमेशा के लिए जा चुके हैं.तीनों बच्चों की पढाई लिखाई ,शादियाँ,उन के बालबच्चे सभी हो रहे हैं ,.रायपुर के घर से सब जा चुके हैं . अब उनके अपने घर हैं गृहस्थियां हैं.इस घर में अब सिर्फ हम दोनों ही रह गए हैं
घर की पहली मंजिल का कमरा  और बाथ रूम अब हमेशा बंद रहते हैं.वहाँ का झूला भी खोल कर अन्दर रख दिया है.सिर्फ कपडे धूप में सुखाने या गमलों के पौधों को पानी देने ही कोई ऊपर जाता है.हम दोनों के लिए नीचे के कमरे ही पर्याप्त से अधिक लगते हैं.धीरे धीरे कुछ  सुविधाएँ बढ़ा ली हैं. पूजा के लिए भी अलग स्थान निकल आया है.रसोई में फिल्टर,चिमनी आदि लगा लिए हैं.
मैं ने काम काज से निवृत्ति ले रखी है ,पिछले कुछ सालों से.सुपर्णा शासकीय सेवा से स्वेच्छापूर्वक निवृत्ति लेने के बाद एक निजी कॉलेज में पढ़ा रही है.
मैं क्या कर रहा हूँ? फिलहाल तो आप सब  से बातें कर रहा हूँ.शेष समय में पढ़ता हूँ कम्प्यूटर  पर  ताश खेलता हूँ,मनपसंद संगीत सुनता हूँ...और प्रभु का धन्यवाद करता हूँ.
बच्चे अब बड़े हो गए हैं, बड़े अब बूढ़े हो चले हैं. उन की फिक्र मैं क्या करूंगा? अब शायद वे मेरे लिए फिक्रमंद होंगे....कालाय तस्मै नमः!
आज इतना ही.

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