बुधवार, 9 दिसंबर 2009

नई सुबह थी आज की . मेरे लिए तो एक से अधिक अर्थों में नई . पहली बात यह है कि आज लगातार दूसरा दिन है  जब मैं अपने नियम पर चल पड़ा हूँ- लिख रहा हूँ. न लिखने का कोई बहाना नहीं तराशा.
दूसरी बात यह कि सुबह खिड़की से बाहर झांका तो समझ में नहीं आया कि बाहर की घास,झुरमुट की झाड़ियाँ,पेड़ों की डालियाँ  सभी का रंग  हरे से  कैसा अजीब सफ़ेद सा हो गया है.बाहर खड़ी अपनी तथा अन्य पड़ोसियों की कारें भी गीली गीली सफेदी में लिपटी सी खड़ी हैं. दूर बिजली के तार पर आँगन में फुदकने वाली चिड़ियाँ एक कतार में दुबकी हुई बैठी थीं.
सड़क पर रोज की तरह फर्राटे भरती कारें नहीं थीं.
धूप का कोई अता पता नहीं था .फिर मालूम हुआ की बाहर का तापमान -१/२ डिग्री था.इसलिए ओस की सारी नमी घनीभूत हो कर बर्फ बन गयी है इसे स्लीट कहते हैं . सड़क का सन्नाटा धीरे धीरे रेंग कर सब तरफ फैलता जा रहा था. मैं यह सोच कर डर रहा था कि कहीं सब कुछ जम न जाए.
गनीमत है कि करीब ९ बजते बजते धूप निकल आयी .और सूरज का जादू चल पड़ा . सफेदी पिघल कर बहने लगी और देखते ही देखते लान की घास,पेड़ों के पत्ते सब हरे हो गए . मैं ने मन ही मन तालियाँ बजाईं.
तुम मुस्कुरा रहे हो.सच तो यह है कि प्रकाश और ऊष्मा से ही धरा पर जीवन है. वह सूरज से मिलती है धरा को.मुझे मिलती है तुम्हारी मुस्कान से.
सविता याने सूरज, भास्कर, आदित्य को समर्पित है गायत्री मंत्र. जय हो! आज इतना ही.

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