शरत चन्द्र चट्टोपाध्याय बांगला के, अपने युग के, सर्वाधिक लोकप्रिय लेखक थे.देवदास उन का सर्वाधिक लोकप्रिय उपन्यास रहा . है.इस उपन्यास पर अब तक तीन बार फ़िल्में बन चुकी हैंहिन्दी में.अन्य भारतीय भाषाओं को मिला लेँ तो देवदास पर बनी फिल्मों की संख्या दर्जन भर से अधिक है. और हर फिल्म खासी लोकप्रिय रही है.
शायद सब से पहले कलकत्ते के न्यू थिएटर्स ने पी सी बरुआ के निर्देशन में देवदास बनाई.कुंदनलाल सहगल के अभिनय तथा उन की आवाज़ से सजी इस फिल्म ने ४० के दशक के दर्शकों में धूम मचा दी थी.इस फिल्म के कैमरा मैन थे बिमल रॉय .लगभग बीस साल बाद,बिमल रॉय ने अपने बैनर तले,अपने ही निर्देशन में देवदास बनाई.दिलीप कुमार,सुचित्रा सेनऔर वैजयंतीमाला के अभिनय से सजी इस फिल्म ने साठ के दशक के दर्शकों में लोकप्रियता अर्जित की.अभी २००२ में संजय लीला भंसाली ने तीसरी फिल्म देवदास पर बनाई.भव्य सेट्स तथा कर्णमधुर संगीत वाली इस रंगीन फिल्म में शाहरुख खान,ऐश्वर्या राय,माधुरी दीक्षित ने काम किया था.यह भी सफल रही.
अब थोड़ी सी चर्चा देवदास के कथानक से प्रभावित असफल प्रेम का सफल चित्रण करने वाली कुछ अन्य फिल्मों की.गुरुदत्त की प्यासा और उन्ही की कागज़ के फूल .दोनों फ़िल्में त्रिकोणीय प्रेम कथाएँ हैं.दोनों में वहीदा रहमान एवं गुरुदत्त का काम लाजवाब है.एस डी बर्मन का संगीत एकदम बढ़िया है.राज कपूर,नर्गिस और प्राण की आर के फिल्म्स के बैनर में बनी आह ! भी प्रेम के हारने की कथा है.फिल्म का बीमार नायक अंत में नायिका के दरवाजे पर दम तोड़ने की हसरत लिए तांगे में बैठ कर निकलता है.मुकेश तांगेवाले की भूमिका में कक गीत गाता है छोटी सी ये जिंदगानी रे ......सब देवदास की याद दिलाती है.
इन छः हिन्दी फिल्मों तथा अन्य भारतीय भाषाओं में भी बनी फिल्मों के मूल प्रेरणा स्रोत देवदास के लेखक उपन्यासकार शरतचंद्र चट्टोपाध्याय को "असफल प्रेम का सफल चितेरा" आप को कैसा लगा?
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