गुरुवार, 31 दिसंबर 2009

Is saal ke bache hue din

यह साल  अब सिर्फ  दो दिन का मेहमान है. कल और परसों.फिर आ रहा है नया साल.....इस सदी का दसवां साल.
क्यों न थोड़ी देर ठहर कर देखें कि जो साल लगभग अपनी पूर्णता की ओर अग्रसर है,वह कैसा रहा?
व्यक्तिगत रूप से देखें तो लगता है कि प्रतिवर्ष के समानइस साल भी कुछ घड़ियाँ परीक्षा की थीं .....तो कुछ पल उपलब्धि के भी थे.राष्ट्र के लिए भी और दुनिया के लिए भी यह कथन लागू होता है.मानव स्वभाव है वह अच्छा अच्छा याद रखता है और बिगड़ी को बिसारता जाता है.यही उचित भी है ताकि वह आगे की सुध ले सके.
ठन्डे दिमाग से सोचें तो लगता है कि ,जो कुछ साल भर में हुआ,वे सब मात्र घटनाएं थीं जो घटित हुईं.न कुछ अच्छा था ....न ही कुछ बुरा था.अच्छी बुरी तो हमारी प्रतिक्रिया थी . मीठा,मीठा गड़ाप गड़ाप , कड़ुआ, कड़ुआ थू थू  है ना बचकानी हरकत .दानिश्ता सोच तो यही होनी चाहिए कि सब कुछ प्रभु का प्रसाद समझ  कर सम भाव से ग्रहण किया जाय.अपने आप को कर्ता/उपभोक्ता न मान कर,जो घट रहा है उसे  साक्षी भाव देखना सीखें.तभी कमलपत्र जैसे जल में रह कर भी अपने आप को सूखा रखा जा सकता है.
सहभागिता सदैव स्वागतेय है.जो कुछ घर बाहर ,आसपास घट रहा है उस में जो कुछ अपेक्षित है वह करना ही है.....पूरे दिल से करना 
है और अपनी पूरी क्षमता से करना है.अपना सहयोग देना है.परन्तु बदले में क्या,कितना और कब मिलना है यह ईश्वर/प्रकृति/ऊपरवाले पर छोड़ देना है.
हमें इस बिदा होते साल के अवसान के दिनों में यही प्रार्थना करनी है प्रभु से कि नव वर्ष में वह हमें एक नई नज़र दे,ताकि हमारे कल  हमारे आज से बेहतर हों.दुनिया नव वर्ष के नए सूरज के नव आलोक में और भी निखर उठे.
आज इतना ही .
 

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