लगभग पंद्रह दिन पूर्व की एक खुशनुमा सुबह ,११ बजे ,नाश्ते से निपट कर हम लोग निकल पड़े थे गिलरॉय गार्डन्स के लिए.एक घंटे चल कर इस पिकनिक स्पाट पर पहुंचना था.रास्ता यहाँ की अन्य सड़कों जैसा आने और जाने की ४-४ लेन वाला रास्ता था.औसत रफ़्तार सभी की ५०-६० मील प्रति घंटे रहती है.सभी अनुशासन बद्धढंग से अपनी लेन में चलते हैं .मुझे इतनी तेज़ रफ़्तार कारों का फर्राटेदार यातायात रोमांचक तथा आनंद दायक लगा .जी पी एस से निर्देश मिल रहे थे. अतः रास्ता भूलने की कोई गुंजाइश नहीं रहती.गार्डन के सामने करीब दो एकड़ का सुदीर्घ पार्किंग एरिया है.
गिलरॉय गार्डन एक निजी स्वामित्व वाला वनस्पति (Horticultural Theme )पार्क है.,जो पहाड़ के दामन में बना है.यहाँ पेड़ पौधों की विभिन्न प्रजातियाँ सुन्दर ढंग से लगाई गईं हैं.इन से ज्ञानवर्धन भी होता है और कलात्मकता का आनंद भी प्राप्त होता है.क्विक सिल्वर एक्सप्रेस नाम है पार्क के अन्दर चलने वाली रेल गाडी का.इस रेल में पार्क का चक्कर लगाते हुए पार्क के सारे इलाके को देखा जा सकता है तथा रेल मार्ग में पड़ने वाले पुल,बोगदे,जलप्रपात,आदि का मज़ा उठाया जा सकता है.
गार्डन में हर उम्र के लोगों के लिए झूले (राइड्स) हैं जिन के नाम यहाँ की थीम के अनुसार स्ट्रा बेरी राइड,गार्लिक ट्विस्टर ,बनाना स्प्लिट वगैरह हैं.खाने, नाश्ते ,आइस्क्रीम,चाय ,अन्य भेंट वस्तुओं की दुकानें सभी अन्दर हैं.
शाम के ५ बजने वाले थे इस का पता तब चला जब गार्डन बंद होने की सूचना ,बार बार उदघोषित की जाने लगी.हम लोग बाहर निकले..देखा कि इतना बड़ा पार्किंग स्थल खचाखच भरा हुआ था.
अपनी कार ढूंढी,बैठे और घर की ओर लौट चले.आज इतना ही.
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सब कुछ पढ़ा, सभी कुछ मज़ेदार लगा ; ईमानदार शब्द बताते हैं कि आदमी अनुभूतियों को कैसे चमत्कार में अनुदित कर देता है।
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