सैन होजे से २०० मील दूर है ईसोमिटी नॅशनल पार्क.२४ दिसंबर को वहां जाने का कार्यक्रम बना.अन्य दर्शनीय स्थलों के समान नहीं कि सोचा,उठे और निकल पड़े .आना जाना और घूमना फिरना करीब ४५० मील की यात्रा थी. इस में भी २०० मील का सफ़र मैदानी क्षेत्र का था तथा शेष २५० मील पर्वतीय वनप्रदेश की चक्करदार संकरी सडकों पर था जिस में ५० मील अत्यंत दुर्गम हिम बाधित मार्ग था शीत ऋतू के कारण दिन छोटे और रातें लम्बी हैं. शाम भी जंगलों ४:३० पर उतर आती है.
इसलिए सारी सम्भावनाओं से निपटने की पूरी तैयारी के साथ सुबह ८:४० पर घर से निकले.घर के बाहर का तापमान २ डिग्री था तथा जहाँ के लिए निकले थे वहां का -२ डिग्री था. खाद्य सामग्री ,आवश्यक गर्म कपडे सब कुछ साथ लिया था.
सड़क पर बर्फ के कारण कार के चक्के फिसलने लगते हैं.इस से बचने के लिए टायर्स पर चढाने की कार चेन खरीदनी थी.एक दो जगह पर पूछा लेकिन नहीं मिली.अंत में तीसरी जगह मिली.उसे भी रखा और ९:३० पर हम चल पड़े गंतव्य की ओर.
पहले के मैदानी भाग के १०० मील पार कर हम एक छोटे गाँव में रुके.कार की टंकी में पूरा पेट्रोल भरवाया और पास की दूकान से वैफल्स लिए और गर्मागर्म चोकोलेट मिल्क पिया.बड़े शहरों के रेस्तरां चेन और भीड़ से बिलकुल अलग अनुभव था.
अब घुमावदार चढ़ाई उतराई वाली यात्रा शुरू हो चुकी थी.वेग कम था.धीरे धीरे बाहर का दृश्य बदलने लगा था.सिर्फ सूचिपर्ण वृक्षों वन दिख रहे थे.अन्य प्रकार के पेड़ विलुप्त हो चुके ठेव.और तभी सामने बहुत दूर बर्फ से ढँकी चोटियाँ दिखने लगीं थीं.हम समुद्र तल से २००० फुट ऊपर आ चुके थे.चढ़ाई जारी थी .क्रमशः 4000और फिर ६०००फुट की ऊंचाइयां पार कर अब एक बार फिर ढलान से नीचे जा रहे थे.कुछ जगहों पर सड़क के किनारे बर्फ पडी दिख जाती थी.किसी किसी पेड़ के पत्तों पर भी बर्फ दिख रही थी.घाटी का रोमांच शुरू हो गया था. सड़क ३ सुरंगों में से गुजर कर जा रही थी .
एक प्रवेश द्वार पर कार रुक गयी. प्रवेश शुल्क दिया.ईसोमिटी पार्क आगया था.२५ मील जाना था. एक घंटा लगने वाला था.
सभी दृश्यावली मेरे लिए एकदम नई,मनोरम तथा अद्भुत थी .मैं,जिसने बर्फ सिर्फ रसोई के फ्रिज में आइस ट्रे में जमते देखी थी ,चारों ओर बर्फ के विस्तार को देख कर चकित था.लगभग सभी वृक्ष दो रंगे लग रहे थे.६० से ८० फुट ऊंचे वृक्षों के ऊपरी भाग धूप में चमकदार हरे दिख रहे थे तथा निचले भाग, जहाँ धूप नहीं थी ,धवल श्वेत थे.वे बर्फ से ढंके थे.
मर्सेड नदी इतनी शीत के बावजूद अब भी बह रही थी.उस के स्वच्छ जल में पास के वृक्षों का प्रतिबिम्ब सुन्दर लग रहा था. अल कप्तान नामक पर्वत श्रृंग,हाफ डोमनामक एक अन्य पर्वत श्रृंग मुझे शिवलिंग सद्रश्य लगे.जमीन से एकदम लम्बवत सीधे जो वर्षों से ग्लेशियर्स ,जलधाराओं,आंधी तूफ़ान सब को झेलते इन पर्वतों को देख कर मन में सिर्फ श्रद्धा उत्पन्न होती है.शायद यहाँ के लोगों को ये पर्वत गिरजा घर की मीनारों जैसे लगते होंगे .
ईसोमिटी जलप्रपात देखकर मजा आ गया.एक तरफ जल धारा बह रही थी.जल शैलखंडों से टकराता हुआ नीचे गिर रहा था ......और वहीं ज़रा सी दूरी पर जल हिम में बदल कर पत्थर पर स्थिर हो गया था.....बर्फ की लकीर खिंची दिखती थी.
शाम तेजी से गहराने लगी थी.धूप का दायरा सिमट रहा था.ठण्ड बढ़ रही थी हवा चुभने लगी थी.सृष्टि के विविध रूप आज पूरे दिन देखे.मन में आया कि सृष्टि तो ब्रह्म का ही रूप है.उस से प्रेम का तात्पर्य ब्रह्म से प्रेम करना है. सृष्टि को जानना भी ब्रह्म को ही जानना है.जिस स्थान को देख कर मन का मल विगलित हो ,मन में पवित्रता आये,सात्विक भाव जागें और सृष्टा का स्मरण हो आये ,वही तो तीर्थ है.
इन्ही विचारों में डूबे हुए शाम ४:३० पर वापसी की शुरुवात की.........और रात साढ़े आठ को घर पहुंचे.
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