रविवार, 13 दिसंबर 2009




कैलिफोर्निया में फाल याने पतझड़ जाने को है. सूचिपर्ण वृक्षों को छोड़ अन्य वृक्षों के पत्ते रंग बदल कर लाल या गहरे पीले हो कर झड़ रहे हैं या झड़ चुके हैं. प्रकृति उन्हें आनेवाले जाड़े या हिमपात के लिए तैयार कर रही है
जब भी सप्ताहांत में चटख धूप वाला साफ़ मौसम होता है,यहाँ के नागरिक सपरिवार अपनी कारों में विभिन्न नैसर्गिक दृश्यों का आनंद  लेने निकल पड़ते हैं.
हम लोग भी हर हफ्ते जब जब भी संभव होता है , निकल पड़ते हैं .हम सैन होजे में रहते हैं जो चारों ओर पर्वत श्रृंखलाओं के बीच की घाटी में बसा हुआ है . पश्चिम की ओर के पहाड़ों के पार प्रशांत महासागर  है.
पिछले सप्ताहांत पर हम लोग  घर से नाश्ता करने के बाद , लगभग १२ बजे दोपहर को, १७ मील के ड्राइव का आनंद लेने पेबल  बीच के लिए चल पड़े.
मौसम साफ़ था . लगभग १०० मील का सफ़र दो घंटों में तय कर के हम पेबल बीच पहुंचे. घुमावदार पर्वतीय मार्ग से गुज़रते हुए निकले.मार्ग के दोनों तरफ स्ट्रा बेरीज तथा विभिन्न सब्जियों के खेत  थे. एक जगह ताजे फलों की दूकान  पर रुक कर संतरे ,सेब और स्ट्रा बेरीज लीं .



बीच यथा नाम छोटे बड़े गोल गोल पत्थरों वाला सागर तट  था. सामने थोड़ी रेत के बाद  क्षितिज तक प्रशांत महासागर का नीला विस्तार था.कार से उतरते ही  तेज ठंडी हवा ने हड्डियों में जलतरंग बजाना शुरू किया . बच्ची के कानों में दर्द होने लगा. तुरंत सब ने स्वेटर पहने ,कनटोप पहने ,कानों में रूई ठूंसी और तब निसर्ग का आनंद लेना संभव हो सका.घर से लाई हुई खाद्यसामग्री  का सेवन  कर हम फिर एक बार निकल पड़े.
यहाँ से १७ मील तक  सड़क की दायीं ओर प्रशांत महासागर  साथ साथ चलता है. समुद्र तल पर तट के समीप बड़ी छोटी चट्टानों के कारण लहरें पछाड़  खा कर सफ़ेद झाग उडाती आती हैं. कुछ चट्टानें सागर के बीच में किनारे से १००-२०० फुट दूरी पर निकली हुई थीं जिन पर विभिन्न जलपक्षी तथा सील मछलियाँ (जिन्हें सी लायन भी कहते हैं ) विश्राम करते हैं.किनारे पर लगी दूरबीनों से पर्यटक उन्हें देखते हैं या उनकी फोटो खींचते हैं.सड़क के बाईं ओर पाइन और साइप्रस के वृक्ष हैं, बस्तियां हैं और गोल्फ के मैदान भी हैं.
एक साइप्रस का पेड़ दायीं तरफ सागर से निकली एक चट्टान पर पिछले २५० वर्षों से ठण्ड, बारिश,तूफ़ान झेलता, अकेला खड़ा है.कार रोक कर उस की फोटो खींची और मन ही मन उस की एकाकी तपस्या को नमन कर हम लोग घर की  ओर लौट पड़े.
अस्ताचलगामी  सूर्यदेव क्षितिज पर सागर में प्रवेश  कर रहे थे. और बायीं ओर बिजली की रोशनी कहीं कहीं शहरों और बस्तियों में झिलमिलाने  लगी थी. शाम गहरा रही थी. कार में  पंडित जसराज का राग दुर्गा बज रहा था .कार वापसी के १०० मील के सफ़र पर चल पडी थी.

आज इतना ही.

3 टिप्‍पणियां:

  1. अगर चित्र भी साथ् होते तो और मज़ा आता । ( हिन्दुस्तानी प्रव्र्रीत्ती )
    /home/gopendra/Desktop/upld/sadhuBhnd.JPG

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  2. Aap hindi mein blogging karne ke liye kaun see site use karte hain.

    -Seema (Rachana ke friend)

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