सोमवार, 14 दिसंबर 2009

बातों का यह स्तम्भ आज अपने अस्तित्व का पहला सप्ताह पूरा कर रहा है. इन सात दिनों में इतना तो निश्चित हुआ ही है कि बरसों से जमी काई में हलचल हुई है तथा बातों का अवरुद्ध प्रवाह गतिमान हुआ है.
इस सप्ताह में कुछ उत्साह वर्धन अपनों की टिप्पणियों ने किया है.गोपेन्द्र ने चित्रों की ओर ध्यान दिलाया और रचना ने सिखाया कि चित्र कैसे अपलोड किये जाते हैं.बातों को संपादित कैसे किया जाता है ,यह भी उसी ने सिखाया.परिणामस्वरूप यात्रावर्णन सजीव हो गया लगता है.यह सब एक शुरुवात के हिसाब से ठीक रहा.
अब रोज लिखने पर जोर देने की बजाय बेहतर अभिव्यक्ति का प्रयास करना है.
(जब  कलम में जोर की खुजली उठेगी ) जब सच मुच में कुछ लिखने के लायक लगेगा तब ही लिखा जाए तो परिणाम बेहतर होगा ऐसा सोचता हूँ.कई विचार हैं जिन पर लिखना है. कुछ और प्रवास वर्णनीय हैं. उन पर भी लिखना है.
आज इतना ही.

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